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गाह गांव: पाकिस्तान में स्थित वह माटी, जहां से निकले भारत के सपूत जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, बना आदर्श गांव और उनकी विरासत का गवाह”

पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। 92 साल के मनमोहन सिंह ने नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 26 दिसंबर 2024 गुरुवार की रात आखिरी सांस ली. उनके निधन पर देश और विदेश में नेता और आम लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। उनकी सादगी, ईमानदारी, और बौद्धिकता की मिसालें दी जा रही हैं। इसी बीच चर्चा में उनका पैतृक गांव गाह भी है, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है।

भारत के 13वें प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का बचपन बॉर्डर पार पाकिस्‍तान में बीता। वहीं पर शुरुआती शिक्षा हुई। इनके परिवार ने भी भारत विभाजन का दर्द झेला। फिर बॉर्डर के इस पार भारत में आकर बस गए। 26 सितंबर 1932 अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के चटवाल जिले के गांव गाह के सिख परिवार में हुआ था। यह जगह अब पाकिस्‍तान का हिस्‍सा है। मनमोहन सिंह के जन्‍म स्‍थान वाला घर आज भी पाकिस्‍ताान में मौजूद है। 

पाकिस्तान के इस गांव में हुआ था जन्म

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित गाह गांव में हुआ था। 2004 में उनके प्रधानमंत्री बनने की खबर पाकिस्तान में भी काफी सुर्खियों में रही। 2007 में, पंजाब प्रांत की तत्कालीन सरकार ने गाह गांव को एक आदर्श गांव बनाने की घोषणा की। इस गांव में आज भी एक सरकारी स्कूल मौजूद है, जिसे मनमोहन सिंह के नाम से पहचाना जाता है।

गाह गांव और मनमोहन सिंह का बचपन

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह गांव में 26 सितंबर 1932 को हुआ था। उन्होंने कक्षा चार तक की पढ़ाई इसी गांव के प्राइमरी स्कूल में की थी। 1937 से 1941 के बीच वह इस स्कूल के छात्र रहे। विभाजन के बाद उनका परिवार अमृतसर आकर बस गया, लेकिन उनके गांव और स्कूल से जुड़े रिकॉर्ड आज भी वहां सुरक्षित हैं।

गाँव की याद और सादगी: प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कई बार अपने बचपन और गाँव का जिक्र किया। उन्होंने कहा था कि उनके गाँव के संघर्षों ने ही उन्हें जीवन में आगे बढ़ने और दूसरों की मदद करने की प्रेरणा दी। उनका जीवन यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन हों, शिक्षा और मेहनत से सबकुछ संभव है।डॉ. मनमोहन सिंह का यह संघर्ष उन सभी के लिए प्रेरणा है जो छोटे गाँवों से आते हैं और बड़े सपने देखते हैं।

गाह गांव के लोगों ने मनमोहन सिंह से गुजारिश की थी कि वो एक बार यहां जरूर आएं। यही नहीं गांव के रहने वाले राजा मोहम्मद अली बताते हैं कि वह एक बार भारत आए थे। यहां उन्होंने मनमोहन सिंह और उनके परिवार से मुलाकात की थी।

गांव में बना ‘मनमोहन सिंह गवर्नमेंट बॉयज प्राइमरी स्कूल’

पाकिस्तान की सरकार ने बाद में इस स्कूल का नाम बदलकर “मनमोहन सिंह गवर्नमेंट बॉयज प्राइमरी स्कूल” रख दिया। स्कूल में आज भी डॉक्टर सिंह के पंजीकरण से लेकर उनके परीक्षा परिणाम तक के रिकॉर्ड सुरक्षित हैं। यह सम्मान उनके योगदान और शांति व सहयोग के प्रति उनके दृष्टिकोण का प्रतीक है।

मनमोहन के पुराने दोस्त क्या कहते हैं?

गाह गांव के ही रहने वाले उनके सहपाठी राजा मोहम्मद अली बताते हैं कि वह और मनमोहन सिंह पहली से चौथी क्लास तक साथ में पढ़े थे। साथ में ही खेलते-कूदते थे। इसके बाद मनमोहन सिंह चकवाल कस्बे में पढ़ने चले गए। दोनों का मिलना-जुलना होता रहता था। फिर जब दोनों देशों का बंटवारा हुआ तो उनका परिवार भारत पलायन कर गया।

एक विनम्र राजनेता थे मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह का निजी जीवन सादगी और विनम्रता से भरा था, ये गुण उन्हें कई लोगों का प्रिय बनाते थे। 1958 में गुरशरण कौर से उनकी शादी हुई और उनकी तीन बेटियाँ हुईं। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में सिंह को स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और 26 दिसंबर 2024 को 92 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

श्रद्धांजलि और यादें डॉक्टर मनमोहन सिंह का जीवन संघर्ष, शिक्षा और समर्पण का प्रतीक रहा। गाह गांव में आज भी उनकी यादें जीवित हैं, और उनका नाम उस क्षेत्र में एक प्रेरणा के रूप में जाना जाता है। विभाजन की पीड़ा के बावजूद, उन्होंने अपने गांव और मूल स्थान के प्रति हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखा। उनके निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी यादें और उनके योगदान हमेशा हमारे साथ रहेंगे।

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