फेफड़ों के कैंसर (Lung Cancer) के अलग-अलग प्रकारों में स्क्वैमस सेल कैंसर (Squamous Cell Cancer) ग्रामीण पुरुषों में सबसे ज्यादा पाया जा रहा है। PGIMS के शोधकर्ताओं द्वारा जारी एक अध्ययन रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस कैंसर का मुख्य कारण बीड़ी पीने की आदत को बताया गया है।
बीड़ी पीने से क्यों बढ़ रहा है खतरा?
शोध के अनुसार, बाजार में मिलने वाली ज्यादातर बीड़ियों में फिल्टर नहीं होता, जिससे सिगरेट की तुलना में ज्यादा निकोटीन और टार शरीर में प्रवेश करता है। यही वजह है कि बीड़ी धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के खतरे को कई गुना बढ़ा रहा है।
दो साल का अध्ययन, 855 मरीजों पर आधारित
यह शोध पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के थोरैसिक ऑन्कोलॉजी क्लिनिक ने किया। सितंबर 2022 से अगस्त 2024 तक हुए अध्ययन में 855 मरीजों में फेफड़ों का कैंसर पाया गया। इनमें से 95.2% मरीज नियमित धूम्रपान करते थे, जबकि 99% धूम्रपान करने वाले मरीज बीड़ी पीने के आदी थे।
स्क्वैमस सेल लंग कैंसर: क्या है यह बीमारी?
फेफड़ों के अंदर की पतली कोशिकाओं में होने वाला यह कैंसर, स्क्वैमस सेल लंग कैंसर, सबसे सामान्य प्रकार के फेफड़ों के कैंसर में से एक है। इस बीमारी का पता आमतौर पर छाती के एक्स-रे और सीटी स्कैन के जरिए लगाया जाता है।
विशेषज्ञों की राय
पीजीआईएमएस के विभागाध्यक्ष प्रो. ध्रुव चौधरी के मुताबिक, भारत की 1.4 अरब से ज्यादा की आबादी में फेफड़ों के कैंसर के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ग्रामीण इलाकों में बीड़ी धूम्रपान आम है, और इन इलाकों पर कम रिसर्च की गई है। यह अध्ययन ग्रामीण भारत की कैंसर-आधारित स्वास्थ्य स्थितियों को समझने का महत्वपूर्ण प्रयास है।
ग्रामीण क्षेत्रों में फेफड़ों के कैंसर से बचाव के तरीके और सुझाव
Taazakhabar.live अपने ग्रामीण पाठकों के लिए सुझाव प्रस्तुत कर रहा है कि कैसे फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाना और जीवनशैली में सुधार करना आवश्यक है। यहां कुछ महत्वपूर्ण बचाव के उपाय और सुझाव दिए गए हैं।
कैसे करें बचाव?
बीड़ी पीने की आदत को छोड़ना, तंबाकू-निरोधक जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और नियमित स्वास्थ्य जांच करवाना फेफड़ों के कैंसर से बचाव का मुख्य तरीका हो सकता है।ग्रामीण क्षेत्रों में बीड़ी धूम्रपान पर जागरूकता फैलाने की सख्त जरूरत है, ताकि फेफड़ों के कैंसर जैसे गंभीर रोगों पर रोक लगाई जा सके।
1. धूम्रपान छोड़ने की पहल करें
बीड़ी और तंबाकू उत्पादों से दूरी बनाएँ:बीड़ी और तंबाकू के सेवन से फेफड़ों में जहरीले पदार्थ जमा होते हैं। इन्हें पूरी तरह छोड़ने के लिए निकोटीन पैच, च्युइंग गम या तंबाकू छोड़ने वाले कार्यक्रमों की मदद लें।
धूम्रपान छोड़ने के लिए सामुदायिक प्रयास:गांवों में जागरूकता कैंप लगाए जाएं और धूम्रपान छोड़ने वालों को प्रोत्साहन मिले।
2. स्वच्छ ईंधन का उपयोग करें
चूल्हे की जगह गैस या बिजली का इस्तेमाल:धुएं से बचने के लिए एलपीजी, बायोगैस या अन्य स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करें।
रसोई में वेंटिलेशन की व्यवस्था करें:खाना बनाते समय धुएं को बाहर निकालने के लिए चिमनी या खिड़की लगवाएँ।
3. पौष्टिक आहार लें
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाना खाएँ: हरी सब्जियां, फल (जैसे संतरा, सेब) और गाजर जैसी चीजें फेफड़ों को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं।
प्रोटीन और फाइबर युक्त आहार:दलिया, मूंगफली, और दालें खाएँ, ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
4. नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएँ
हर साल हेल्थ चेकअप कराएँ: गांवों में कैंसर जांच शिविर आयोजित किए जाएं, ताकि शुरुआती चरण में बीमारी का पता चल सके।
छाती के एक्स-रे और सीटी स्कैन:अगर लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ, या छाती में दर्द हो तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
5. जागरूकता फैलाएँ
तंबाकू-निरोधक अभियान:गांव के बुजुर्गों और युवाओं को तंबाकू के नुकसान के बारे में शिक्षित करें।
स्कूलों और पंचायतों में कैंप: बच्चों और ग्रामीणों के लिए कैंसर बचाव पर कार्यशालाएँ आयोजित करें।
6. व्यायाम और योग को अपनाएँ
प्राणायाम और गहरी सांस का अभ्यास: यह फेफड़ों को मजबूत बनाता है और फेफड़ों की सफाई करता है।
शारीरिक मेहनत:खेतों में काम करते समय सही सांस लेने की आदत डालें और धूल-धुएं से बचें।
7. पर्यावरण को स्वच्छ रखें
गांव में स्वच्छ हवा का प्रबंधन:खेतों में पराली जलाने और कचरा जलाने से बचें।
पौधे लगाएँ:अधिक पेड़-पौधे लगाने से गांव की हवा शुद्ध होगी।
8. घरेलू उपाय और सावधानियाँ
हल्दी-दूध पिएं: हल्दी एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होती है, जो फेफड़ों को साफ रखने में मदद करती है।
धुएं वाले क्षेत्रों से बचें:लकड़ी जलाने या धूम्रपान वाले स्थानों पर कम से कम समय बिताएं।
ग्रामीण स्वास्थ्य की सुरक्षा सबकी जिम्मेदारी है इन उपायों को अपनाकर न केवल फेफड़ों के कैंसर से बचा जा सकता है, बल्कि एक स्वस्थ जीवनशैली भी सुनिश्चित की जा सकती है। समुदाय और सरकार को मिलकर इन समस्याओं का हल निकालने की दिशा में काम करना चाहिए।