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Sat. Apr 19th, 2025

भारत में अगर गांवों का समुचित विकास नहीं हुआ और शहरीकरण को ही प्राथमिकता दी जाती रही, तो गांवों से पलायन कभी नहीं रुकेगा। इस असमानता को दूर करने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये का निवेश जरूरी है। किसानों को C2+50% फॉर्मूले के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, मनरेगा का बजट बढ़ाने, किसान सम्मान निधि की राशि में वृद्धि करने और फसल बीमा योजना का 100% प्रीमियम सरकार द्वारा वहन करने जैसे ठोस कदम उठाने की जरूरत है। अगर ऐसा किया गया, तो अगले 10 वर्षों में गांवों की तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है।

किसानों के लिए ठोस नीतियां आवश्यक

सरकार के पास इच्छाशक्ति हो, तो किसानों के हित में बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, किसानों को उनकी फसल लागत पर 50% अतिरिक्त लाभ मिलना चाहिए था, लेकिन अभी तक यह पूरी तरह लागू नहीं हुआ है। मौजूदा MSP प्रणाली में भी किसानों को उनकी उपज के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर, सोयाबीन की MSP ₹4892 प्रति क्विंटल तय है, लेकिन सरकारी खरीद नहीं होने के कारण किसान इसे ₹3800 प्रति क्विंटल में बेचने को मजबूर हैं। इसी तरह, कपास की MSP ₹7550 है, लेकिन किसान इसे ₹6800-₹7200 के बीच बेचने को मजबूर हैं। अगर सरकार उचित मूल्य देने की गारंटी नहीं दे सकती, तो किसानों को सीधी आर्थिक सहायता देनी चाहिए।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 10 लाख करोड़ रुपये का निवेश जरूरी

शहरी विकास के लिए सरकार ने 100 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेकर बुनियादी ढांचे पर खर्च किया है, जिससे शहरों में सड़कों, हवाई अड्डों और मेट्रो जैसी सुविधाएं विकसित हुई हैं। लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों को मात्र मुफ्त राशन और मामूली नकद सहायता तक सीमित कर दिया गया है। ऐसे में गांवों की लाचारी दूर करने के लिए सरकार को उसी तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 10 लाख करोड़ रुपये का प्रवाह करना चाहिए।

इस राशि को C2+50% फॉर्मूले के तहत MSP देने, सब्सिडी बढ़ाने और अन्य आर्थिक सहायता योजनाओं में लगाया जाए, तो गांवों और शहरों के बीच का आर्थिक अंतर कम किया जा सकता है। अगर यह सही तरीके से लागू होता है, तो आने वाले दशक में गांवों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है।

असींचित क्षेत्रों के किसानों को 10,000 रुपये प्रति एकड़ सब्सिडी मिल

कृषि संकट को देखते हुए सरकार को उन किसानों की भी चिंता करनी चाहिए, जो असिंचित क्षेत्रों में खेती कर रहे हैं। इन्हें कम से कम ₹10,000 प्रति एकड़ की सब्सिडी मिलनी चाहिए। अभी जो सब्सिडी मिल रही है, वह मुख्य रूप से सिंचित खेती करने वाले किसानों के लिए है, जिसमें नहरों से पानी लेने, ड्रिप इरिगेशन और उर्वरकों पर छूट जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

लेकिन, असिंचित क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों को इस प्रकार की कोई सहायता नहीं मिलती। ऐसे में या तो सरकार उन्हें प्रत्यक्ष सब्सिडी दे या फिर मनरेगा का बजट बढ़ाए, जिससे वे बुवाई से कटाई तक के कार्यों में मजदूरी करके अपनी आय बढ़ा सकें।

फसल बीमा का 100% प्रीमियम सरकार वहन करे

कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और बाजार की अस्थिरता के कारण जोखिम बढ़ रहा है। ऐसे में किसानों के लिए एक प्रभावी फसल बीमा योजना आवश्यक है, जिसका 100% प्रीमियम सरकार को देना चाहिए।

इसके अलावा, बीमा यूनिट को ब्लॉक स्तर के बजाय गांव स्तर पर लागू किया जाना चाहिए, ताकि छोटे किसानों को अधिक लाभ मिल सके। यदि इस योजना में सुधार किया जाता है, तो किसानों को जलवायु परिवर्तन और बाजार के उतार-चढ़ाव से काफी राहत मिलेगी।

दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भरता आवश्यक

भारत में दलहन और तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीति की जरूरत है। हाल ही में अरहर दाल की कीमतें ₹12,000 प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं, लेकिन जैसे ही किसानों की उपज बाजार में आई, दाम ₹7,000 प्रति क्विंटल तक गिर गए। इसी तरह, सरकार द्वारा सस्ती मटर का आयात किए जाने से चने की कीमतों में भी गिरावट देखने को मिली।

अगर सरकार इसी तरह दलहन और तिलहन का आयात जारी रखती है, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। किसानों और दाल मिल मालिकों ने भी सरकार से दलहन आयात पर रोक लगाने की मांग की है, ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके।

किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाई जाए

मनरेगा योजना 2005-06 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा शुरू की गई थी। उस समय देश का बजट ₹5-6 लाख करोड़ था, जो उनके कार्यकाल में बढ़कर ₹10 लाख करोड़ हो गया था।

आज देश का बजट ₹50 लाख करोड़ के करीब पहुंच चुका है, ऐसे में मनरेगा के लिए कम से कम ₹4 लाख करोड़ का प्रावधान किया जाना चाहिए। वर्तमान में, 10 करोड़ किसानों को मात्र ₹60,000 करोड़ की सहायता दी जा रही है, जबकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर हर साल ₹1 लाख करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। यह आर्थिक असमानता को और गहरा बना रही है।

किसानों की आय बढ़ाकर दूर होगी असमानता

कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और बाजार की अनिश्चितताओं से प्रभावित हो रहा है। ऐसे में अगर किसानों को वित्तीय सुरक्षा नहीं दी गई, तो आने वाली पीढ़ी खेती से दूर हो जाएगी।

अगर सरकार 2026 में आठवें वेतन आयोग को लागू करती है, तो एक चपरासी की न्यूनतम दैनिक मजदूरी ₹1500 तक हो सकती है। ऐसे में, किसानों को भी कम से कम ₹800-₹1000 प्रतिदिन कमाने का अवसर मिलना चाहिए, तभी “सबका साथ, सबका विकास” का नारा सही मायने में पूरा हो सकेगा।

निष्कर्ष

बजट 2025 में सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे। कृषि को प्राथमिकता देते हुए किसानों को MSP की गारंटी, सब्सिडी में वृद्धि, मनरेगा का विस्तार, फसल बीमा का सुधार और दलहन-तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है।

अगर सरकार 10 लाख करोड़ रुपये ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निवेश करती है, तो शहरों और गांवों के बीच की खाई को पाटने में मदद मिलेगी। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और गांवों से होने वाला पलायन भी रुकेगा, जिससे देश की संपूर्ण आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

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