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ग्रामीण पलायन: वीरान होते भारत देश के लाखों गांवों को बचाने की जरूरत। गांवों से हो रहा है पलायन, क्या बचेगी भारत की आत्मा?

भूमिका:

भारत, जिसकी आत्मा उसके गांवों में बसती है, आज एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है—ग्रामीण पलायन। भले ही देश की लगभग दो-तिहाई आबादी अभी भी गांवों में रहती है, लेकिन यह आंकड़ा धीरे-धीरे घट रहा है। गांव, जो कभी सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के केंद्र हुआ करते थे, अब वीरान होते जा रहे हैं।

गांवों की बदलती तस्वीर:

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे क्षेत्रों में हालात ज्यादा चिंताजनक हैं। एक समय था जब गांव के हर गली-मोहल्ले में बच्चों की चहल-पहल, खेतों में किसानों की मेहनत और चौपाल पर बुजुर्गों की चर्चाएं आम दृश्य थीं। लेकिन अब इन जगहों पर सन्नाटा पसरा है। सरकारी रिकॉर्ड में भले ही आबादी के आंकड़े बड़े दिखते हों, मगर हकीकत में कई घरों पर ताले लटके हैं, और जो बचे हैं वे या तो बुजुर्ग हैं या बच्चे।

पलायन के प्रमुख कारण:

1. रोजगार के अवसरों की कमी: गांवों में उद्योग-धंधों का अभाव है, जिससे युवाओं को शहरों की ओर रुख करना पड़ता है।

2. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी लोग पलायन करने को मजबूर हैं।

3. आधुनिक जीवनशैली की चाह: शहरी जीवन की चमक-धमक और बेहतर जीवन स्तर की आकांक्षा भी पलायन को बढ़ावा देती है।

पलायन के प्रभाव:

सांस्कृतिक क्षरण: गांवों की पारंपरिक विरासत और सांस्कृतिक गतिविधियां लुप्त होती जा रही हैं।

कृषि पर असर: खेतों में काम करने वाले लोगों की कमी के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित होता है।

सामाजिक ढांचा कमजोर: परिवार बिखर जाते हैं, जिससे बुजुर्गों और बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ता है।

समाधान के उपाय:

1. स्थानीय रोजगार सृजन: ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योग, हस्तशिल्प, और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए।

2. शिक्षा और स्वास्थ्य का विस्तार: गांवों में गुणवत्तापूर्ण स्कूल और अस्पताल स्थापित किए जाएं।

3. आधुनिक तकनीक का प्रयोग: कृषि और अन्य क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकों के उपयोग से युवाओं को जोड़ने की कोशिश की जा सकती है।

4. ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाना: पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत कर स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ानी चाहिए।

निष्कर्ष:

गांव केवल भौगोलिक इकाइयां नहीं हैं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक जड़ें हैं। अगर हमें अपने देश की आत्मा को जीवित रखना है, तो पलायन की इस प्रवृत्ति को रोकना होगा। इसके लिए सरकार, समाज और हर नागरिक को मिलकर काम करना होगा, ताकि गांव फिर से गुलजार हो सकें और उनकी रौनक लौट आए।

छांव की तलाश थी और दोपहर को चुन बैठे,कुछ लोग गांवो को छोड़ शहर को चुन बैठे।

अब कैद हैं घर की चार दिवारियों के भीतर,हवा छोड़ कर आये थे अब जहर को चुन बैठे।

अब याद करते हैं लकड़ी के बने मकानों को,गांव के पटालों को छोड़ संगमरमर को चुन बैठे।

अब शामिल होते हैं शहरों की भागदौड़ में रोज,ऊंचे ख्वाबों में जमीं छोड़ अम्बर को चुन बैठे।

ऐकड़ों की हैसियत रखते थे जो अपने गावों में,छोड़ रईसी को मुट्ठी भर की गुजर बसर चुन बैठे।

अब ना इधर की ठौर ना उधर का ठिकाना है,समुंदर के राही किनारे छोड़ लहर को चुन बैठे।

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