सहारनपुर. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद क्षेत्र स्तिथ में पड़ने वाला एक गांव मिरगपुर नशा मुक्त गांव के लिए देशभर में एक पहचान बन चुका है. यहां के लोग पिछले 500 साल से मांस-मदिरा का सेवन अथवा धूमपान जैसा कोई नशा नहीं करते. इतना ही नहीं ग्रामीण प्याज-लहसुन तक से भी परहेज रखते है.नशा मुक्त गांव के लिए देशभर में पहचान बना चुके मिरगपुर का नाम इंडिया बुक आफ रिकार्ड में भी वर्ष 2020 में दर्ज हुआ था. सहारनपुर के ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध देवबंद से आठ किलोमीटर दूर मंगलौर रोड पर काली नदी के तट पर बसा मिरगपुर अपने खास रहन-सहन और सात्विक खानपान के लिए विख्यात है. करीब 10 हजार आबादी का मिरगपुर गांव धूम्रपान रहित गांव की श्रेणी में शुमार है.बाबा गुरु फकीरा दास ने दी थी सलाहबताया जाता है कि आज से करीब 500 साल पहले इस गांव में बाबा गुरु फकीरा दास आए थे, उन्होंने गांव के लोगों से कहा था कि वो नशा और दूसरे तामसिक पदार्थों का परित्याग कर दें तो गांव सुखी और समृद्धशाली बन जाएगा. यहां के लोग इस परंपरा का पालन 17वीं शताब्दी से करते आ रहे हैं.
रिश्तेदार भी यहां आकर छोड़ देते हैं नशायहां बाबा गुरु फकीरा दास की समाधि है और उनकी याद में हर साल एक बड़ा मेला लगता है. इस मौके पर ग्रामीण रिश्तेदारों को अपने घर बुलाते हैं. इस दिन खाने पीने की सभी चीजें देसी घी में बनाती है. अगर कोई मेहमान धूम्रपान का शौकीन है भी तो वह भी यहां आकर ऐसा नहीं करता है. गांव को नशामुक्त बनाने में कुछ युवाओं ने अहम योगदान दिया. गांव के लोग इसे बाबा फकीरा दास का आशीर्वाद मानते हैं. यहां के युवा हो या बूढ़े सभी लोग व्यायाम और खेलकूद की तरफ ज्यादा फोकस रखते है.