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उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले का धनौरा गांव अब “मिनी कोलकाता” के नाम से पहचाना जाने लगा है। इस गांव की खासियत इसके चारों ओर फैली फिशरीज और तालाब हैं।

कभी बंजर मानी जाने वाली इस जमीन पर ग्रामीणों ने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से मछली पालन की शुरुआत की। समय के साथ यह गांव मत्स्य पालन का प्रमुख केंद्र बन गया।आज धनौरा में 40 से अधिक फिश हैचरी और अनगिनत तालाब हैं। यहां करोड़ों की संख्या में मछली बीज तैयार होता है,

जिसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे कई राज्यों में भेजा जाता है। इसके साथ ही, बड़े पैमाने पर मछली पालन ने न केवल ग्रामीणों की आजीविका बेहतर की है, बल्कि बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है।मछली पालन से मिलने वाले आर्थिक लाभ ने धनौरा को एक नई पहचान दी है।

यहां के मच्छी पालन ग्रामीण का कहना है कि इस गांव की बिल्कुल उर बंगर जमीन थी और बंगर जमीन होने की वजह से यहां पर फसल नहीं होती थी धीरे-धीरे 2003 से आज इतने फार्म खुल चुके हैं कि यह मिनी कोलकाता बन चुका है अपने यहां क्षेत्र में लम समम मान के चलो 40 से 45 चचरी होग खेती में अगर एक लाख आदमी बचाता है तो इसमें दो से 3 लाख बचा सकता है एक एकड़ में हमारे यहां से जैसे मान लो बिहार जाता है एमपी जाता है राजस्थान जाता है हरियाणा जाता है पंजाब भी जाता है।

खेती तो कुछ भी नहीं है इसके साथ अगर सही करके पैसा हो या सही करके पैसा लगाया जाए तो खेती कुछ भी नहीं है हमने वो टाइम भी देखा है कि कभी खेती हमारे यहां पे अगर 10 एकड़ में अगर धान लगा रहे हैं तो 10 एक क्विंटल ही होते थे जब से यह फिशरी इस का काम करा तो मेरी आईडिया में मैंने नहीं अभी तक कोई सुना कि हाभी इसमें नुकसान है रामपुर का धनोरा गांव या फिर कहिए मिनी कोलकाता क्योंकि इस गांव में जब आप आएंगे तो चप्पे-चप्पे पर यहां पर आपको फिश है कचरी और बड़े-बड़े तालाब देखने को मिलेंगे

यह गांव अब न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए मछली बीज उत्पादन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है।

नोट: Taazakhabar.live अपने सभी ग्रामीण पाठकों को धनौरा गांव के विकास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण उपाय प्रदान कर रहा है, ताकि आप भी इन्हें अपने गांव और क्षेत्र में लागू कर सकें।

1. मछली पालन में विविधता लाएं: केवल एक प्रकार की मछली के पालन की बजाय, विभिन्न प्रजातियों की मछलियों का पालन करें ताकि आपके कारोबार को स्थिरता मिले और जोखिम कम हो।

2. तकनीकी ज्ञान बढ़ाएं: मछली पालन के नए तरीकों और तकनीकी विकास के बारे में जानकारी रखें, जैसे कि जल गुणवत्ता नियंत्रण, पानी की फिल्ट्रेशन तकनीक और उन्नत हैचरी सिस्टम।

3. सस्टेनेबल प्रैक्टिस अपनाएं: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय प्रभावों से बचने के लिए पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का पालन करें, जैसे कि जल संरक्षण और बायोफ्लोक तकनीक का उपयोग।

4. नए बाजारों का अन्वेषण करें: अपने मछली बीज और उत्पादों को नए बाजारों तक पहुंचाने के लिए नेटवर्क बढ़ाएं। राज्यों के अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी विस्तार के अवसर देख सकते हैं।

5. सामूहिक सहयोग और समर्थन: एक दूसरे के अनुभवों और ज्ञान से लाभ उठाएं। गांव के अन्य मछली पालकों से सहयोग और विचार-विमर्श करें, जिससे आप अपने व्यवसाय को और बेहतर बना सकते हैं।

6. स्मार्ट कृषि विधियों का उपयोग करें: मछली पालन के साथ-साथ कृषि उत्पादों का सह-उत्पादन भी करें। इससे खेती की जमीन का और बेहतर उपयोग हो सकता है और आय के स्रोत में विविधता आएगी।

7. सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं: मछली पालन और कृषि संबंधित सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का सही तरीके से उपयोग करें, जिससे आपको आर्थिक सहायता मिल सके।

इन उपायों को अपनाकर धनौरा गांव के लोग अपनी मछली पालन की गतिविधियों को और अधिक लाभकारी और स्थिर बना सकते हैं।

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