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Thu. Jan 23rd, 2025

Tobbaco Pesticide: किसानों की फसलों को कीट-पतंगों से दिलाएगा छुटकारा तंबाकू से बना कीटनाशक, बेहद आसान है बनाने का तरीका

तंबाकू का सेवन मनुष्य की सेहत के लिए भले ही हानिकारक माना जाता है, मगर इसके डंठल से बनाए गए तंबाकू कीटनाशक (Pesticides) का उपयोग करके फसलों (Crops) को कई तरह के हानिकारक कीटों के प्रकोप से बचाया जा सकता है। आइए जानें कि तंबाकू से कीटनाशक कैसे बनाया जा सकता है…

तंबाकू (Tobbaco) का सेवन स्वास्थ्य लिए हानिकारक माना जाता है। लेकिन, यही तंबाकू पौधों की सेहत के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। तंबाकू के डंठल का उपयोग करके कीटनाशक बनाया जा सकता है, जिसका उपयोग सफेद मक्खी, लाही, मधुआ, फलीछेदक कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए कर सकते हैं।

तंबाकू की व्यावसायिक खेती की जाती है और इसकी पत्तियों का बड़े पैमाने पर कारोबार होता है। पान, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट और हुक्का इत्यादि में तंबाकू के उपयोग के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन इससे बनने वाले कीटनाशक के बारे में आपको शायद ही जानकारी होगी। आज हम आपको तंबाकू से कीटनाशक बनाने की विधि बता रहे हैं। इस कीटनाशक को आप खुद भी बना सकते हैं और कीटनाशकों पर होने वाले भारी-भरकम खर्च से बच सकते हैं। इस तरह, आपकी खेती की लागत भी कम हो सकती है।

ऐसे बनाएं कीटनाशक तंबाकू से कीटनाशक बनाने की विधि बेहद आसान है। आपको बता दें कि कीटनाशक बनाने के लिए तंबाकू की पत्तियों की जगह इसके डंठल का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले तंबाकू के डंठल को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और उसे मसलकर चूरा बना लिया जाता है। तंबाकू के डंठल के इस चूरे को 10 लीटर पानी में डालकर उबाल लेना है। जब यह मिश्रण आधा घंटा खौल जाए तो उसे ठंडा करने के लिए छोड़ देना है। ठंडा होने के बाद इस घोल को छानकर रख लें। इसके बाद, तंबाकू के इस प्रति लीटर घोल में 2 ग्राम कपड़े धोने वाला साबुन मिला लें। इसमें पानी मिलाकर 80 से 100 लीटर घोल तैयार कर लें।

अब आपका कीटनाशक फसलों पर छिड़काव के लिए तैयार हो गया है। इस घोल के छिड़काव से सफेद मक्खी, लाही, मधुआ और फलीछेदक जैसे कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, इस कीटनाशक का अधिक उपयोग फसलों के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है। इसीलिए, फसलों पर दो बार से अधिक इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी ज्ञानवर्धन के लिए लिए है। उपयोग से पहले नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र अथवा कृषि विभाग के विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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